प्राचीन काल मे छोटानागपुर एक पूर्ण वनक्षेत्र था । सघन वनों एवं पहाड़ियों से परिपूर्ण यह क्षेत्र कैमूर और विंध्य पहाड़ियों से घिरा था । फिर बाह्य आक्रमण यदाकदा होते रहे, वनों और पर्वतो की बहुलता ने ही आदिम जनजातियो को यहाँ बसने के लिए आकर्षित किया । असुर , खडिया और बिरहोर यहाँ की प्राचीन जनजातियां थी । इसके बाद कोरबा जनजाति तथा कोरबा के बाद मुंडा, उरांव, हो आदि जनजातियां आकर झारखंड क्षेत्र मे बसी। इसके बाद झारखंड मे बसने वाली जनजातियो में चेरो,खरवार, भूमिज तथा संथाल थे ।
असुर झारखंड मे निवास करने वाली सबसे प्राचीन आदिम जनजाति थी। लौहे को गलाकर आजीविका चलाने वाली असुर जनजाति ने नवपाषाण काल से लेकर बुद्ध पूर्व काल तक छोटानागपुर क्षेत्र मे प्रवास किया । इनके द्वारा निर्मित अनेक असुरगढों के अवशेष आज भी पाए जाते हैं । ये भवन निर्माण कला मे भी निपुण थे । संभवतः वर्तमान की लोहार जनजाति इन्हीं के वशंज हैं । वैदिक आर्यो का विरोध करने वाले नाग असुरो की ही शाखा थे ।
असुर झारखंड मे निवास करने वाली सबसे प्राचीन आदिम जनजाति थी। लौहे को गलाकर आजीविका चलाने वाली असुर जनजाति ने नवपाषाण काल से लेकर बुद्ध पूर्व काल तक छोटानागपुर क्षेत्र मे प्रवास किया । इनके द्वारा निर्मित अनेक असुरगढों के अवशेष आज भी पाए जाते हैं । ये भवन निर्माण कला मे भी निपुण थे । संभवतः वर्तमान की लोहार जनजाति इन्हीं के वशंज हैं । वैदिक आर्यो का विरोध करने वाले नाग असुरो की ही शाखा थे ।