Monday 4 November 2019

Jharkhand Vidhansabha

     भारतीय संविधान के अनुच्छेद -170 से सम्बंधित राज्य में एक विधानसभा के होने का प्रावधान है ,जिसके सदस्यों का निर्वाचन राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा किया जाता है। राज्य के विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण परिसीमन आयोग के द्वारा किया जाता है। वर्तमान झारखण्ड में विधानसभा सदस्यों की संख्या 82 है , जिसमें 81 सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर तथा 1 सदस्य का मनोयन राज्यपाल द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है। विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है , परन्तु राज्य में आपात स्थिति लागू होने पर संसद के द्वारा इसकी अवधि माह तक बढ़ाई जा सकती है। इसे पुनः छह माह और बढ़ाया जा सकता है। इस तरह से इसका कार्यकाल 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद -172 (1) में वर्णित है। किसी दल के बहुमत नहीं होने पर या सरकार के बहुमत खो देने की स्थिति में राज्यपाल के द्वारा विधानसभा को उसके कार्यकाल पूर्ण होने से पहले भी विघटित किया जा सकता है। राज्यपाल के द्वारा विधानसभा का अधिवेशन बुलाया जाता है ,परन्तु विधानसभा के दो अधिवेशनों के बीच में अधिकतम छह महीने का अंतर् होना चाहिए। झारखण्ड विधानसभा की कुल 82 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए 28, अनुसूचित जाति के लिए 9 सीटें आरक्षित हैं तथा शेष 44 सीट सामान्य श्रेणी की हैं।

     विधानसभा सदस्य बनने की योग्यताएँ -
  • वह भारत का नागरिक हो एवं कम से कम 25 वर्ष की उम्र का हो। 
  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो। 
  • वह दिवालिया या पागल न हो।                                                  

      विधानसभा अध्यक्ष  एवं उपाध्यक्ष 
   भारतीय संविधान के अनुच्छेद -178 के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष का पद निर्धारण है। इनका चुनाव सम्बंधित विधानसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष की भांति विधानसभा अध्य्क्ष विधानसभा की कार्रवाई चलाने का अधिकारी होता है ,अध्यक्ष की अनुपस्थिति में विधानसभा को  उपाध्यक्ष कार्रवाई चलाते है। 

विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार 
  • वह राज्यपाल का सन्देश विधानसभा में तथा विधानसभा का निर्णय राज्यपाल को देता है। 
  • किसी विधेयक में मत बराबर होने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष विधेयक के लिए निर्णायक मत देते है। 
  • कोई विधेयक दोनों सदन में पास हो जाने के बाद अध्यक्ष उस विधेयक पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। 
विधानसभा सदस्यों का अधिकार 
      संविधान के अनुच्छेद -194 के अनुसार किसी विधानसभा सदस्य ( विधायक ) को सदन में अपनी बात अध्यक्ष की पूर्व अनुमति से रखने का अधिकार है। सदन में विधायकों द्वारा दिय गए किसी वक्तव्य के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई वाद नहीं चलाया जा सकता, लेकिन सदस्यों को विधानसभा के अंदर न्यायपालिका की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। 

विधानसभा के कार्य 
    विधायी  कार्य -विधानसभा को राज्य सूचि तथा समवर्ती सूचि के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। 
   वित्तीय कार्य -धन विधेयक केवल विधानसभा में ही पेश हो सकता है। एक बार धन विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद विधानपरिषद में उसे पेश किया जाता है। विधानपरिषद को 14 दिन के अंदर पास करना होता है ,नहीं तो स्वता पारित मन लिया जाता है। राज्यपाल को धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है। 
संवैधानिक कार्य -संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने में भारतीय संसद को संशोधन करने के लिए देश के आधे राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति आवश्यक होती है। विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। राज्यसभा में राज्य के प्रतिनिधिओं के चुनाव में विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते है। राज्य की मंत्री परिषद विधानसभा के लिए उत्तरदाई होती है। विधानसभा किसी भी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने पर दंड दे सकती है। 

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