Thursday 5 March 2020

नगरपालिकाएं

नगरपालिकाएं तीन प्रकार की हैं --
  क. नगर पंचायत , ऐसे क्षेत्र के लिए जो ग्रामीण क्षेत्र से नगर क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा है ,
  ख. नगर परिषद , छोटे नगर क्षेत्र के लिए ,
   ग. नगर निगम , बड़े नगर क्षेत्र के लिए।
  अनुच्छेद 243 थ ने प्रत्येक राज्य के लिए ऐसी इकाइयां गठित करना अनिवार्य कर दिया है।
किन्तु यदि कोई ऐसा नगर क्षेत्र है जहां कोई औधोगिक स्थापन नगरपालिक सेवाए प्रदान कर रहा है या इस प्रकार प्रदान किये जाने का प्रस्ताव है तो क्षेत्र का विस्तार और अन्य तथ्यों पर विचार करने के पश्चात राज्यपाल उसे औधोगिक नगर घोषित कर सकेगा। ऐसे क्षेत्र के लिए नगरपालिका गठित करना आज्ञापक नहीं होगा।

Friday 15 November 2019

धरती आबा - बिरसा मुंडा

   बिरसा मुंडा भारत के एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक थे, जिनकी ख्याति अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम मे काफी हुई थी। उन्होंने ब्रिटिश शासन, जमींदारों और महाजनों के विरूद्ध आंदोलन किया, जिसे बिरसा उलगुलान के नाम से जाना जाता है । केवल 25 वर्ष के जीवन मे उन्होंने इतने मुकाम हासिल कर लिए थे कि आज भी भारत की जनता उन्हें याद करती है और भारतीय संसद में एक मात्र आदिवासी नेता बिरसा मुंडा का चित्र टंगा हुया है ।
    बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर, 1875 को खूंटी जिले के उलिहातु गाँव मे हुआ था । बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था ।
 
  
   उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ नारा दिया ' रानी का शासन खत्म करो और हमारा साम्राज्य स्थापित करो '। अंग्रेजो ने आदिवासी नीति मे बदलाव किया जिससे                आदिवासियों को काफी नुकसान हुआ था । 1895 मे लगान माफी के लिए उन्होंने आदिवासियों एवं स्थानीय लोगों का नेतृत्व कर अंग्रेजो के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था । वे ' बिरसायत संप्रदाय ' के प्रवर्तक थे । बिरसा मुंडा ने सन् 1900 मे अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह करने की घोषणा करते हुए कहा --" हम ब्रिटिश शासन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह करने की घोषणा करते हैं और कभी अंग्रेजो के नियमों का पालन नहीं करेंगे "। अंग्रेज सरकार ने बिरसा की गिरफ्तारी पर 500 रूपए का इनाम रखा था ।
  अंग्रेजी सरकार ने विद्रोह का दमन करने के लिए 3 फरवरी 1900 को मुंडा को गिरफ्तार कर लिया, जब वे अपनी गुरिल्ला सेना के साथ जंगल मे सो रहे थे । उस समय 460 आदिवासियों को भी उनके साथ गिरफ्तार किया गया । 9 जून, 1900 को रांची जेल में उनकी रहस्यमय तरीके से मौत हो गई और अंग्रेजी सरकार ने मौत का कारण हैजा बताया था, जबकि उनमें हैजा का कोई लक्षण नहीं थे । केवल 25 वर्ष की उम्र मे उन्होंने ऐसा काम कर दिया कि सभी भारतीय उनको याद करते हैं ।

Tuesday 12 November 2019

Lugu Buru Mahoutsav

टीटीपीएस ललपनिया के पास स्थित लुगुबुरू घांताबारी, "संथालियों" आदिवासियों के एक छोटे से गाँव, गोमिया ब्लॉक से लगभग 16 किलोमीटर दूर, संथाल समुदाय का गौरव है, जिसे होर-डिशोम में सोसनन जुग कहा जाता है। लुगुबुरू घंटाबरी धर्मगढ़ वर्ष 2000 में फिर से स्थापित किया गया था।
लुगु बुरु घांटा बारी में आदिवासी संगठनों द्वारा हर साल मेला  आयोजित किया जाता है, उस स्थान के रूप में प्रसिद्ध है जहाँ आदिवासी गुरु लुगु बुरु ने अपने शिष्यों के साथ 12 साल ध्यान में बिताए थे, इस  आयोजन को  झारखंड सरकार ने  राज्योत्सव का दर्जा दिया है।

लुगु बुरु, को  संथाल  अपना संस्थापक पिता मानते हैं, । मुख्य कार्यक्रम, प्रार्थना और धार्मिक प्रवचन, लुगु पहाड़ियों के ऊपर एक गुफा के पास होते हैं, जो कि 7 किमी की खड़ी चढ़ाई है।


, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के साथ-साथ भारत के विभिन्न हिस्सों जैसे ओडिशा, बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल से और झारखंड के भीतर से जनजातियों के प्रतिनिधि आते है ।  प्रतिभागियों में झारखंड के बाहर के कई आदिवासी धार्मिक नेता शामिल होते है ।

Monday 4 November 2019

Jharkhand Vidhansabha

     भारतीय संविधान के अनुच्छेद -170 से सम्बंधित राज्य में एक विधानसभा के होने का प्रावधान है ,जिसके सदस्यों का निर्वाचन राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा किया जाता है। राज्य के विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र का निर्धारण परिसीमन आयोग के द्वारा किया जाता है। वर्तमान झारखण्ड में विधानसभा सदस्यों की संख्या 82 है , जिसमें 81 सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर तथा 1 सदस्य का मनोयन राज्यपाल द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है। विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है , परन्तु राज्य में आपात स्थिति लागू होने पर संसद के द्वारा इसकी अवधि माह तक बढ़ाई जा सकती है। इसे पुनः छह माह और बढ़ाया जा सकता है। इस तरह से इसका कार्यकाल 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद -172 (1) में वर्णित है। किसी दल के बहुमत नहीं होने पर या सरकार के बहुमत खो देने की स्थिति में राज्यपाल के द्वारा विधानसभा को उसके कार्यकाल पूर्ण होने से पहले भी विघटित किया जा सकता है। राज्यपाल के द्वारा विधानसभा का अधिवेशन बुलाया जाता है ,परन्तु विधानसभा के दो अधिवेशनों के बीच में अधिकतम छह महीने का अंतर् होना चाहिए। झारखण्ड विधानसभा की कुल 82 सीटों में से अनुसूचित जनजाति के लिए 28, अनुसूचित जाति के लिए 9 सीटें आरक्षित हैं तथा शेष 44 सीट सामान्य श्रेणी की हैं।

     विधानसभा सदस्य बनने की योग्यताएँ -
  • वह भारत का नागरिक हो एवं कम से कम 25 वर्ष की उम्र का हो। 
  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो। 
  • वह दिवालिया या पागल न हो।                                                  

      विधानसभा अध्यक्ष  एवं उपाध्यक्ष 
   भारतीय संविधान के अनुच्छेद -178 के अनुसार प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष का पद निर्धारण है। इनका चुनाव सम्बंधित विधानसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है। लोकसभा अध्यक्ष की भांति विधानसभा अध्य्क्ष विधानसभा की कार्रवाई चलाने का अधिकारी होता है ,अध्यक्ष की अनुपस्थिति में विधानसभा को  उपाध्यक्ष कार्रवाई चलाते है। 

विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार 
  • वह राज्यपाल का सन्देश विधानसभा में तथा विधानसभा का निर्णय राज्यपाल को देता है। 
  • किसी विधेयक में मत बराबर होने की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष विधेयक के लिए निर्णायक मत देते है। 
  • कोई विधेयक दोनों सदन में पास हो जाने के बाद अध्यक्ष उस विधेयक पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। 
विधानसभा सदस्यों का अधिकार 
      संविधान के अनुच्छेद -194 के अनुसार किसी विधानसभा सदस्य ( विधायक ) को सदन में अपनी बात अध्यक्ष की पूर्व अनुमति से रखने का अधिकार है। सदन में विधायकों द्वारा दिय गए किसी वक्तव्य के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई वाद नहीं चलाया जा सकता, लेकिन सदस्यों को विधानसभा के अंदर न्यायपालिका की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। 

विधानसभा के कार्य 
    विधायी  कार्य -विधानसभा को राज्य सूचि तथा समवर्ती सूचि के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। 
   वित्तीय कार्य -धन विधेयक केवल विधानसभा में ही पेश हो सकता है। एक बार धन विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद विधानपरिषद में उसे पेश किया जाता है। विधानपरिषद को 14 दिन के अंदर पास करना होता है ,नहीं तो स्वता पारित मन लिया जाता है। राज्यपाल को धन विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है। 
संवैधानिक कार्य -संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करने में भारतीय संसद को संशोधन करने के लिए देश के आधे राज्यों के विधानमंडलों की स्वीकृति आवश्यक होती है। विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। राज्यसभा में राज्य के प्रतिनिधिओं के चुनाव में विधानसभा के सदस्य ही भाग लेते है। राज्य की मंत्री परिषद विधानसभा के लिए उत्तरदाई होती है। विधानसभा किसी भी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने पर दंड दे सकती है। 

Friday 1 November 2019

Code of Conduct

किसी भी राज्य में चुनाव से पहले एक अधिसूचना जारी की जाती है। इसके बाद उस राज्य में ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है। मज़े की बात यह है कि आम मतदाता तो यह जानता तक नहीं कि आखिर ‘आदर्श आचार संहिता’ किस बला का नाम है। ऐसे में बहुत से सवाल मुँह उठाकर खड़े हो जाते हैं। जैसे- आदर्श आचार संहिता क्या होती है? इसे कौन लागू करता है? इसके नियम-कायदे क्या हैं? इसे लागू करने का मकसद क्या है? इनके अलावा इस मुद्दे से जुड़ी कई और जिज्ञासाएँ भी हैं, जिनके बारे में हर जागरूक मतदाता को जानकारी होनी चाहिये।

क्या है आदर्श आचार संहिता?


मुक्त और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों को एक उत्सव जैसा माना जाता है और सभी सियासी दल तथा वोटर्स मिलकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। चुनावों की इस आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में हवा बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आजमाते हैं। ऐसे माहौल में सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल वोटर्स के बीच जाते हैं। ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखने के लिये सभी को बराबर का मौका देना एक बड़ी चुनौती बन जाता है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम करती है।
  • चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही यह लागू हो जाती है और नतीजे आने तक जारी रहती है।
  • दरअसल ये वो दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है। साथ ही सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के मकसदों में शामिल है।
  • आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।
  • दिलचस्प बात यह है कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है। यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
  • सबसे पहले 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के तहत बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
  • 1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया। इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी। इसके बाद से लगभग सभी चुनावों में आदर्श आचार संहिता का पालन कमोबेश होता रहा है।
  • गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे। 

आदर्श आचार संहिता के लिये अपनाई जा रही एडवांस तकनीकें


जब डिजिटलीकरण और हाई-टेक होने का दौर चल रहा हो तो भला चुनाव आयोग क्यों पीछे रहता। आदर्श आचार संहिता को और यूज़र-फ्रेंडली बनाने के लिये कुछ समय पहले चुनाव आयोग ने ‘cVIGIL’ एप लॉन्च किया। तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिज़ोरम और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल हो रहा है।
  • cVIGIL के ज़रिये चुनाव वाले राज्यों में कोई भी व्यक्ति आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की रिपोर्ट कर सकता है। इसके लिये उल्लंघन के दृश्य वाली केवल एक फोटो या अधिकतम दो मिनट की अवधि का वीडियो रिकॉर्ड करके अपलोड करना होता है।
  • उल्लंघन कहाँ हुआ है, इसकी जानकारी GPS के ज़रिये ऑटोमेटिकली संबंधित अधिकारियों को मिल जाती है।
  • शिकायतकर्त्ता की पहचान गोपनीय रखते हुए रिपोर्ट के लिये यूनीक आईडी दी जाती है। यदि शिकायत सही पाई जाती है तो एक निश्चित समय के भीतर कार्रवाई की जाती है।
यह तो बात हुई इस एप के फायदों की, लेकिन हम सब यह भी जानते हैं कि नफे के साथ नुकसान भी जुड़ा होता है। इसी के मद्देनज़र इस एप के गलत इस्तेमाल को रोकने के भी इंतज़ाम किये गए हैं।
  • यह एप केवल आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के बारे में काम करता है। तस्वीर लेने या वीडियो बनाने के बाद यूज़र्स को रिपोर्ट करने के लिये केवल पाँच मिनट का समय मिलता है और इसमें पहले से ली गई फोटोज़ या वीडियो अपलोड नहीं किये जा सकते।
  • हाई-टेक होने की दौड़ में cVIGIL एप के अलावा चुनाव आयोग ने और कई एडवांस तकनीकों को भी अपनाया है। इनमें नेशनल कंप्लेंट सर्विस, इंटीग्रेटेड कॉन्टैक्ट सेंटर, सुविधा, सुगम, इलेक्शन मॉनिटरिंग डैशबोर्ड और वन वे इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट आदि शामिल हैं।
  • चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता तथा अन्य उपायों के ज़रिये चुनावों को निष्पक्ष और साफ-सुथरा बनाने के प्रयास लगातार करता रहता है और इसके लिये उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा भी गया है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारत जैसे बड़े देश में चुनावों को केवल आदर्श आचार संहिता के रहमो-करम पर नहीं छोड़ा जा सकता है।

Saturday 26 October 2019

Sohrai

   सोहराई भारतीय राज्यों झारखंड , बिहार , छत्तीसगढ़ , ओडिशा और पश्चिम बंगाल का त्योहार है । यह एक फसल उत्सव है जो सर्दियों के फसल के मौसम की शुरुआत में आयोजित किया जाता है। यह झारखंड के सदान  और आदिवासी  द्वारा मनाया जाता है 
   यह अक्टूबर-नवंबर के महीने में  कार्तिक के अमावस्या को मनाया जाता है । कुछ क्षेत्रों में इसे मध्य जनवरी में भी मनाया जाता है। कार्तिक आमवस्या को जब हिन्दू , बौद्ध और जैन धर्मावलम्बी दीपोत्सव मनाते है ,तब यहां सोहराई मनाया जाता है। इसमें सभी पशुओं को नहलाया - धुलाया और गौशाला को सजाया जाता है। गौशाला के मार्ग में रंगों से अल्पना बनाकर पशुओ को  उसमे आदर सहित प्रवेश कराया जाता है। 

   रात्रि में उनके सींगों पर तेल और सिंदूर लगाते है और काली मुर्गी या सूअर की बलि देते है। अगले दिन गौशाला जाकर रंगुआ मुर्गे ( बांगने  वाला मुर्गा,) की बलि दी जाती है इसके बाद हंडिया का तपान दिया जाता है। पशुओं के लिए अनाजों से तैयार ' पखवा ' खिलाया जाता है और इसे लोगों द्वारा प्रसाद रूप में खाया जाता है। दोपहर को बरध खूंटा( पशु दौड़ ) को आयोजन किया जाता है।